सोमवार, 25 अप्रैल 2016

कर्म कैसे करे


विनोबा की माँ जामन डालकर दही जमाती थी  और राम का नाम लेती थी |विनोबा जब बड़े हो गए तो उन्होंने कहा कि माँ और सब बाते समझ आती है |ये बताओ दही जामन से जमता है या ईश्वर का नाम लेने से ?ये क्या मामला है ,तो उनकी माँ ने हंसकर कहा कि बेटे जामन देने से ही दूध का दही जमता है | जामन से ही जमता है तो फिर ईश्वर की क्या आवश्यकता | बेटे ,सिर्फ इतनी आवश्यकता है कि कल जब सुबह सुबह बहुत अच्छा दही जम जाएगा तो मुझे यह अहंकार ना आ जाये कि मैंने जमाया है ,इसलिए राम का नाम लिया | मेरी श्रध्दा मेरे इस कर्तापने और अहंकार को कि मै करता हूँ ,इसको नष्ट करती है |इसलिए ईश्वर के प्रति श्रद्धा भी आवश्यक है ईश्वर का इतना बड़ा रोल है | यह सहयोग बहुत जरुरी है ईश्वर का जीवन में | मै उसके प्रति श्रद्धा रखूं और अपने अहंकार को ........................... और यदि कल का दिन दही नहीं जमता है तो मै किसी को शिकायत  न करू | मैं किसी को दोषी  ना ठहराऊ |मै संक्लेश ना करू |इससे ईश्वर मुझे बचा लेता है |  बस इतनी सी ही बात है
                                                                                                       मुनि क्षमासागर महाराज 

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

दीप ज्योति

शुभ करने वाली , कल्याण  करने वाली , धन संपत्ति देने वाली , दुष्ट बुदधि का नाश करने वाली हे दीप ज्योति , तुझे नमस्कार है| प्रकाश के आते ही अन्धकार नष्ट होता है और अंधकार के नाश होने से सर्वत्र मंगलता , समृद्धि  छा जाती है |
     दीप ज्योति अग्नि का , सौम्य शांत तेज है | दीप ज्योति को लक्ष्मी स्वरुप माना गया है | दीप ज्योति का शांत सौम्य प्रकाश अंतःकरण में पवित्रता और स्नेह की भावना उजागर करता है |आज  के विज्ञान युग में , जब विद्युत् दीपों का प्रकाश आँखों को चकाचौंध कर रहा है , उस समय घी का दीप जला कर उसे नमस्कार करना हास्यास्पद लगेगा | हमारे   पूर्वजों ने दीप दर्शन को प्रधानता दी  है इसके पीछे गहरा अर्थ और कृतज्ञता की भावना है , अतः दीप को नमस्कार  करने की आवश्यकता आज भी उतनी  ही है |
        दीप अपनी ज्योति से अनेक दीपों को प्रज्वलित करने की क्षमता रखता है |ऐसी क्षमता विद्युत् दीपों के पास कहाँ ? मानव को दीप से प्रेरणा लेनी चाहिए कि मैं स्वयं प्रकाशित रहूँगा और दूसरों को भी प्रकाशित करूंगा| स्वयं जलकर अज्ञान दूर करने और ज्ञान रूपी प्रकाश फ़ैलाने की जीवन शिक्षा दीपक हमें देता है | यह दीपक करोडपति के राज महल को प्रकाशित करता है तो निर्धन की झोपडी का अन्धकार भी वही दीप नष्ट करता है | अंधकार याने मृत्यु , प्रकाश याने जीवन | उत्साह , पवित्रता और मांगल्य के भाव दीप के साथ जुड़े होते है | हमारे प्राणों को प्राण ज्योति , आत्मा को आत्म ज्योति तथा ज्ञान को ज्ञानज्योति कहकर संबोधित करते हैं | वह छोटा सा दीप सतत हमें प्रेरणा देता है की तू छोटा अवश्य है पर सतत  जलने की शक्ति , तेरा साहस अतुलनीय है | तू प्रेरणादायक है , इसलिए कहा गया है तमसो मा ज्योतिर्गमय |



शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

मानव मूल्य

जिन मान्यताओं के आधार  पर हम अपने को अपने समाज  को न केवल धारण और व्यवस्थित कर पाते हैं , बल्कि दोनों में निहित लोक मांगलिक संभावनाओं को चरितार्थ भी करते हैं मानव मूल्य कहलाते हैं | मानव मूल्य मानवता को गरिमा प्रदान करते हैं | मानव मूल्यों से युक्त व्यक्तित्व ऐसी अमर निधि है , जिसकी प्रतिकृति जीवन सुन्दर होकर स्वर्निमता का रूप धारण करती है | इससे जीवन में यश , अर्थ , काम, और मोक्ष की प्राप्ति होती है |
  मानव और मानवीय मूल्य सर्वोपरि है | संसार की समस्त उपलब्धियां मानव के लिए हैं , मानव उनके लिए नहीं  है | मृत्यु जीवन का यथार्थ है | जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है | मानव मूल्य एक ऐसी आचरण सहिता या सद्गुण समूह है जिसे अपने संस्कारों एवं पर्यावरण के माध्यम से अपना कर मनुष्य अपने निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपनी जीवन पद्धति का निर्माण करता है | अपने व्यक्तित्व का विकास करता है |
  वास्तव में मानव मूल्य तीन बातों पर निर्भर हैं - [१] जो व्यक्ति विशेष की मान्यता है -यह मानव मूल्य है [२] जैसा वह व्यवहार करता है - यह व्यवहार व्यावहारिक मूल्यों को प्रगट करता है [३] जो हम जीवन के घात प्रतिघात से अनुभव द्वारा सीखते हैं और अपने मूल्यों  का पुनर्निर्माण करते हैं | प्राचीन और नवीन  दोनों में जो ग्राह्य है , उनका समन्वय करके ही वांछित मूल्यों का निर्माण होता है इसमें परंपरागत मूल्यों की अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है |
    मानव मूल्यों का सम्बन्ध नैतिक विचार से है और नीति का घनिष्ठ सम्बन्ध धर्म और दर्शन से है |भारत वर्ष में धर्म और दर्शन साथ साथ  चलते रहे है | ये दोनों ही नैतिक जीवन के आधार स्तम्भ माने  गये हैं |जीवन क्या है ? इसका लक्ष्य क्या है? अच्छा क्या है ? बुरा क्या है? अच्छा ही क्यूँ बनना चाहिए ? इन प्रश्नों का उत्तर एवं विविध मूल्यों का समाधान दर्शन के द्वारा ही होता है |हमारी संस्कृति में निहित नीति सिद्धांत न केवल हमारी नैतिक सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को विशेष आधार प्रदान करते है अपितु इनका पोषण भी करते आये  हैं|