शुक्रवार, 31 जुलाई 2020
जीवन का नजरिया
एक स्थान पर मंदिर का निर्माण चल रहा था, सैकड़ों मजदूर निर्माण कार्य में जुटे थे, पत्थर तराश रहे थे ।इसी बीच किसी संत का गुजरना हुआ। संत ने काम करते हुए मजदूर से पूछा भाई,क्या कर रहे हो? मजदूर ने कहा -दिखता नहीं ,अंधे हो क्या? पत्थर तोड रहा हूं । संत मुस्करा कर आगे बढे । कुछ दूरी पर दूसरे मजदूर से वही प्रश्न पूछा ।उसने जवाब दिया,_ पेट पाल रहा हूं । उसके स्वरों में बेबसी और लाचारी झलक रही थी ।एक मजदूर गीत गुनगुना रहा था उससे पूछा भाई तुम क्या कर रहे हो । मजदूर के होंठों पर मुस्कान आती, बोला मंदिर बना रहा हूं । भगवान यहां बैठेंगे । यहां एक काम हो रहा है पर तीन तरह की प्रतिक्रियाएं, तीन अलग-अलग मनोभावों को व्यक्त कर रही हैं । पत्थर तोड़ने का काम करके जीवन को गुजारे का साधन बनाकर चलते है। बस यूं ही लाचारी में जीवन बिता देते हैं।वे जीवन का अभिनंदन नहीं करते ।वे बड़े विरले और विलक्षण होते हैं जो अपने जीवन के प्रति अहोभाव से भरे होते हैं।जो अपनी जिंदगी को सकारात्मकता से लेते हैं ।वे सच में अपने जीवन को एक मंदिर बना लेते हैं।
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