गुरुवार, 15 सितंबर 2016

माँ
लबो पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती
माँ एक अनुभूति है ,विश्वास है,अपना सा रिश्ता है |माँ एक अक्षर नहीं है | ताकत है|जिसका एहसास सिर्फ माँ बनकर ही लगाया जा सकता है|
माँ बनने के बाद माँ की दुनिया ही बदल जाती है ,फिर उसकी आँखे सोती कम है सपने ज्यादा देखती है |माँ बेटी का अनोखा रिश्ता होता है |उसका पहला डगमगाता कदम ,पहली शरारत ,पहली किताब ,पहला खिलौना ,माँ बच्चे के लिए कितना जुड़ जाती है |कितना बट जाती है ,बिटिया को सजा देकर कितना रोती है और माँ कहते ही कितना पिघल जाती है ,कोई अंदाज नहीं लगा सकता |माँ .........................माँ है |

रविवार, 22 मई 2016

मनुष्य न केवल अपने चरित्र का निर्माता स्वयं है ,अपितु अपने भाग्य का निर्माता भी स्वयं है |जब हम महान चरित्र वाले व्यक्तियो की तुलना साधारण लोगों से करते है तब  असंख्य भिन्नताए  पाते है | हर व्यक्ति के व्यक्ति के चरित्र में एक दुसरे से अगणित भिन्नता है  |इसकी व्याख्या हम कैसे करे ?हम देखते है एक बच्चा जन्म से गूंगा बहरा है ?कैसे जब कई दूसरा अति संपन्न परिवार में  जन्म लेता है  ,जबकि वही दूसरा बच्चा कभी कभी अपनी माँ के दुध के लिए भी तड़प कर भूखों मर जाता है? कैसे हम व्याख्या करें , जब एक व्यक्ति दिन रात संघर्ष करके बड़ी कठनाई  से  दो समय का भोजन प्राप्त करता है, कभी कभी तो उसे दो समय का भोजन भी नही मिलता जबकि दूसरा व्यक्ति अनेक सुस्वाद भोजन सामग्री पर्याप्त मात्र में खाता है - मानो वह भोजन के ढेरों पर लोटता रहता है और यह समझ नही पाता कि इतने अधिक अतिरित भोजन सामग्री का क्या करूँ ?
              एक व्यक्ति लगभग रोगी ही जन्म लेता है जबकि दूसरा व्यक्ति स्वस्थ व निरोगी जीवन यापन करता है | इसका क्या कारण है ? इसका कारण कर्म  सिद्धांत ही है | जो हम बोते है , वही काटते हैं हमारा जीवन हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम है | इसीलिए यह स्वाभाविक है कि हम भविष्य में जो कुछ भी होंगे , वह हमारे वर्तमान कर्मों के द्वारा ही निश्चित होगा | इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य न केवल अपने चरित्र का निर्माता स्वयं है अपितु अपने भाग्य का भी स्वयं निर्माता है |
आइये,हम शांत होकर बैठे एवम् स्वयं की एक छवि उकेरने का प्रयास करे |स्वयं से पूछे हम किस तरह के व्यक्ति होना चाहते है ?हम उन्ही अद्भुत गुणों एवं शक्तियों की कल्पना करे, जिन्हें अपने पूर्ण विकसित व्यक्तित्व में देखना चाहते है |हम अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व का एक ऐसा स्पष्ट चित्र बनाने की कोशिस करे ,जिसमे सभी उन्नत एवम उत्क्रिस्ठ गुणों की पूर्ण अभिव्यक्ति होती हो|
अपने व्यक्तित्व का मानसिक चित्र बनाने में हम जितने स्पष्ट एवम निश्चयी होंगे ,उतने ही उन्नत व्यक्तित्व का निर्माण करने में सफल होंगे |

रविवार, 1 मई 2016

एक काम के तीन नजरिये

एक स्थान पर मंदिर का निर्माण चल रहा था सैंकड़ो मजदूर निर्माण कार्य में जुटे थे .पत्थर तराश रहे थे |इसी बीच किसी संत का उधर से गुजरना हुआ |संत ने काम करते हुए एक मजदूर  से पूछा कि भाई .क्या कर रहे हो ?उस मजदूर  ने बेरुखी से घूरते हुए संत को जवाब दिया ,दिखता नहीं ,अंधे हो क्या ? पत्थर तोड़ रहा हूँ |संत मुस्कुराकर आगे बढ़ गए |कुछ दुरीं पर दूसरा मजदूर भी यही काम कर रहा था | वे उसके नज़दीक पहुंचे और पहुँच कर उससे भी वही प्रश्न पूछा कि, भाई क्या कर रहे हो | उसने जवाब दिया ,पेट पाल रहा हूँ |उसके स्वरों में बेबसी और लाचारी झलक रही थी | संत मुस्कुराकर उठे थोडा आगे बढे, कुछ दुरी पर एक तीसरा मजदूर भी वही काम कर रहा था जो पत्थर तोड़ते तोड़ते मुह  से कुछ गीत भी गुनगुना रहा था | संत के प्रश्न दोहराने पर मजदूर के होठों में एक मुस्कान आई , बोला मंदिर बना रहा हूँ | भगवान् यहाँ बैठेंगे |
               यहाँ काम एक हो रहा है पर तीन तरह की प्रतिक्रियाएं, तीन अलग अलग मनोभावों को व्यक्त कर रही है | मनुष्य तीन तरह के होते हैं , कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सारी ज़िन्दगी केवल पत्थर तोड़ने का कार्य करते हैं | कुछ लोग हैं जो केवल पेट पाल कर रह जाते हैं |लेकिन वे लोग विरले होते हैं जो अपने जीवन को मंदिर बना लेते हैं | जिस मनुष्य के भीतर क्रोध भरा होगा , गुस्सा  भरा होगा उसका जवाब यही होगा की पत्थर तोड़ रहा हूँ | ऐसे लोग अपने जीवन में कुछ हासिल नही कर पाते| जो केवल गुज़ारे का साधन बना के चलते हैं वे अपने जीवन को समग्रता से पहचानते नही | लेकिन तीसरे लोग बड़े विरल पर विलक्षण होते हैं | ये वे होते हैं जो अपने जीवन के प्रति अहोभाव से भरे होते हैं | इनका दृष्टिकोण अपने जीवन के प्रति बड़ा सकारात्मक होता है | वे सच में अपने जीवन को एक मंदिर बना लेते हैं |

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

कर्म कैसे करे


विनोबा की माँ जामन डालकर दही जमाती थी  और राम का नाम लेती थी |विनोबा जब बड़े हो गए तो उन्होंने कहा कि माँ और सब बाते समझ आती है |ये बताओ दही जामन से जमता है या ईश्वर का नाम लेने से ?ये क्या मामला है ,तो उनकी माँ ने हंसकर कहा कि बेटे जामन देने से ही दूध का दही जमता है | जामन से ही जमता है तो फिर ईश्वर की क्या आवश्यकता | बेटे ,सिर्फ इतनी आवश्यकता है कि कल जब सुबह सुबह बहुत अच्छा दही जम जाएगा तो मुझे यह अहंकार ना आ जाये कि मैंने जमाया है ,इसलिए राम का नाम लिया | मेरी श्रध्दा मेरे इस कर्तापने और अहंकार को कि मै करता हूँ ,इसको नष्ट करती है |इसलिए ईश्वर के प्रति श्रद्धा भी आवश्यक है ईश्वर का इतना बड़ा रोल है | यह सहयोग बहुत जरुरी है ईश्वर का जीवन में | मै उसके प्रति श्रद्धा रखूं और अपने अहंकार को ........................... और यदि कल का दिन दही नहीं जमता है तो मै किसी को शिकायत  न करू | मैं किसी को दोषी  ना ठहराऊ |मै संक्लेश ना करू |इससे ईश्वर मुझे बचा लेता है |  बस इतनी सी ही बात है
                                                                                                       मुनि क्षमासागर महाराज 

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

दीप ज्योति

शुभ करने वाली , कल्याण  करने वाली , धन संपत्ति देने वाली , दुष्ट बुदधि का नाश करने वाली हे दीप ज्योति , तुझे नमस्कार है| प्रकाश के आते ही अन्धकार नष्ट होता है और अंधकार के नाश होने से सर्वत्र मंगलता , समृद्धि  छा जाती है |
     दीप ज्योति अग्नि का , सौम्य शांत तेज है | दीप ज्योति को लक्ष्मी स्वरुप माना गया है | दीप ज्योति का शांत सौम्य प्रकाश अंतःकरण में पवित्रता और स्नेह की भावना उजागर करता है |आज  के विज्ञान युग में , जब विद्युत् दीपों का प्रकाश आँखों को चकाचौंध कर रहा है , उस समय घी का दीप जला कर उसे नमस्कार करना हास्यास्पद लगेगा | हमारे   पूर्वजों ने दीप दर्शन को प्रधानता दी  है इसके पीछे गहरा अर्थ और कृतज्ञता की भावना है , अतः दीप को नमस्कार  करने की आवश्यकता आज भी उतनी  ही है |
        दीप अपनी ज्योति से अनेक दीपों को प्रज्वलित करने की क्षमता रखता है |ऐसी क्षमता विद्युत् दीपों के पास कहाँ ? मानव को दीप से प्रेरणा लेनी चाहिए कि मैं स्वयं प्रकाशित रहूँगा और दूसरों को भी प्रकाशित करूंगा| स्वयं जलकर अज्ञान दूर करने और ज्ञान रूपी प्रकाश फ़ैलाने की जीवन शिक्षा दीपक हमें देता है | यह दीपक करोडपति के राज महल को प्रकाशित करता है तो निर्धन की झोपडी का अन्धकार भी वही दीप नष्ट करता है | अंधकार याने मृत्यु , प्रकाश याने जीवन | उत्साह , पवित्रता और मांगल्य के भाव दीप के साथ जुड़े होते है | हमारे प्राणों को प्राण ज्योति , आत्मा को आत्म ज्योति तथा ज्ञान को ज्ञानज्योति कहकर संबोधित करते हैं | वह छोटा सा दीप सतत हमें प्रेरणा देता है की तू छोटा अवश्य है पर सतत  जलने की शक्ति , तेरा साहस अतुलनीय है | तू प्रेरणादायक है , इसलिए कहा गया है तमसो मा ज्योतिर्गमय |



शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

मानव मूल्य

जिन मान्यताओं के आधार  पर हम अपने को अपने समाज  को न केवल धारण और व्यवस्थित कर पाते हैं , बल्कि दोनों में निहित लोक मांगलिक संभावनाओं को चरितार्थ भी करते हैं मानव मूल्य कहलाते हैं | मानव मूल्य मानवता को गरिमा प्रदान करते हैं | मानव मूल्यों से युक्त व्यक्तित्व ऐसी अमर निधि है , जिसकी प्रतिकृति जीवन सुन्दर होकर स्वर्निमता का रूप धारण करती है | इससे जीवन में यश , अर्थ , काम, और मोक्ष की प्राप्ति होती है |
  मानव और मानवीय मूल्य सर्वोपरि है | संसार की समस्त उपलब्धियां मानव के लिए हैं , मानव उनके लिए नहीं  है | मृत्यु जीवन का यथार्थ है | जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है | मानव मूल्य एक ऐसी आचरण सहिता या सद्गुण समूह है जिसे अपने संस्कारों एवं पर्यावरण के माध्यम से अपना कर मनुष्य अपने निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपनी जीवन पद्धति का निर्माण करता है | अपने व्यक्तित्व का विकास करता है |
  वास्तव में मानव मूल्य तीन बातों पर निर्भर हैं - [१] जो व्यक्ति विशेष की मान्यता है -यह मानव मूल्य है [२] जैसा वह व्यवहार करता है - यह व्यवहार व्यावहारिक मूल्यों को प्रगट करता है [३] जो हम जीवन के घात प्रतिघात से अनुभव द्वारा सीखते हैं और अपने मूल्यों  का पुनर्निर्माण करते हैं | प्राचीन और नवीन  दोनों में जो ग्राह्य है , उनका समन्वय करके ही वांछित मूल्यों का निर्माण होता है इसमें परंपरागत मूल्यों की अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है |
    मानव मूल्यों का सम्बन्ध नैतिक विचार से है और नीति का घनिष्ठ सम्बन्ध धर्म और दर्शन से है |भारत वर्ष में धर्म और दर्शन साथ साथ  चलते रहे है | ये दोनों ही नैतिक जीवन के आधार स्तम्भ माने  गये हैं |जीवन क्या है ? इसका लक्ष्य क्या है? अच्छा क्या है ? बुरा क्या है? अच्छा ही क्यूँ बनना चाहिए ? इन प्रश्नों का उत्तर एवं विविध मूल्यों का समाधान दर्शन के द्वारा ही होता है |हमारी संस्कृति में निहित नीति सिद्धांत न केवल हमारी नैतिक सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को विशेष आधार प्रदान करते है अपितु इनका पोषण भी करते आये  हैं|