मनुष्य न केवल अपने चरित्र का निर्माता स्वयं है ,अपितु अपने भाग्य का निर्माता भी स्वयं है |जब हम महान चरित्र वाले व्यक्तियो की तुलना साधारण लोगों से करते है तब असंख्य भिन्नताए पाते है | हर व्यक्ति के व्यक्ति के चरित्र में एक दुसरे से अगणित भिन्नता है |इसकी व्याख्या हम कैसे करे ?हम देखते है एक बच्चा जन्म से गूंगा बहरा है ?कैसे जब कई दूसरा अति संपन्न परिवार में जन्म लेता है ,जबकि वही दूसरा बच्चा कभी कभी अपनी माँ के दुध के लिए भी तड़प कर भूखों मर जाता है? कैसे हम व्याख्या करें , जब एक व्यक्ति दिन रात संघर्ष करके बड़ी कठनाई से दो समय का भोजन प्राप्त करता है, कभी कभी तो उसे दो समय का भोजन भी नही मिलता जबकि दूसरा व्यक्ति अनेक सुस्वाद भोजन सामग्री पर्याप्त मात्र में खाता है - मानो वह भोजन के ढेरों पर लोटता रहता है और यह समझ नही पाता कि इतने अधिक अतिरित भोजन सामग्री का क्या करूँ ?
एक व्यक्ति लगभग रोगी ही जन्म लेता है जबकि दूसरा व्यक्ति स्वस्थ व निरोगी जीवन यापन करता है | इसका क्या कारण है ? इसका कारण कर्म सिद्धांत ही है | जो हम बोते है , वही काटते हैं हमारा जीवन हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम है | इसीलिए यह स्वाभाविक है कि हम भविष्य में जो कुछ भी होंगे , वह हमारे वर्तमान कर्मों के द्वारा ही निश्चित होगा | इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य न केवल अपने चरित्र का निर्माता स्वयं है अपितु अपने भाग्य का भी स्वयं निर्माता है |
एक व्यक्ति लगभग रोगी ही जन्म लेता है जबकि दूसरा व्यक्ति स्वस्थ व निरोगी जीवन यापन करता है | इसका क्या कारण है ? इसका कारण कर्म सिद्धांत ही है | जो हम बोते है , वही काटते हैं हमारा जीवन हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम है | इसीलिए यह स्वाभाविक है कि हम भविष्य में जो कुछ भी होंगे , वह हमारे वर्तमान कर्मों के द्वारा ही निश्चित होगा | इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य न केवल अपने चरित्र का निर्माता स्वयं है अपितु अपने भाग्य का भी स्वयं निर्माता है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें